राजस्थानी कथा संग्रह ‘आंगणै री आस’ का हुआ लोकार्पण

कल्पना के बगैर जीवन का कोई अर्थ नहीं : प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण

आरएनई, जोधपुर। विश्व के सबसे बड़े आलोचक इलियट भारत से कहानी परम्परा को खोजते हुए कहते की दुनिया की सबसे बड़ी कहानी एक अक्षर की है। यह बात ख्यातनाम कवि-आलोचक डाॅ. अर्जुनदेव चारण ने संवळी संस्थान द्वारा आयोजित डाॅ. कप्तान बोरावड़ के कहानी संग्रह ‘आंगणै री आस’ के लोकार्पण समारोह में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कही। उन्होंने कहा कि लोकधर्मिता सहजता में होती है अतिशयता में नहीं। क्योंकि सहज होना बड़ा कठीन काम होता है लेकिन कप्तान की कहानियां उस सहजता एवं अपणायत दोनों का सम्मिश्रण है । कहानीकार सदैव कल्पना से यथार्थ की ओर बढता है क्योंकि कल्पना के बगैर जीवन का कोई अर्थ नहीं होता।

संस्थान के सदस्य मूलाराम बोरावड़ ने बताया कि इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि ख्यातनाम कवि-कथाकार डॉ. मंगत बादल ने कहा कि कप्तान बोरावड़ की कहानियां ग्रामीण परिवेश की मानवीय संवेदनाओं से गूंथी हुई सहज एवं सरल कहानियां है जो इसकी विशिष्ट बनाती है। उन्होंने कहा कि इन कहानियों की भाषा, शैली, शिल्प, कथानक मुंशी प्रेमचंद की भांति ग्रामीण जीवन को उजागर करती है । विशिष्ट अतिथि युवा कवि-आलोचक डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा की राजस्थानी संस्कृति से हदभांत जुड़ी हुई मानवता की पक्षधर ये कहानियां प्राचीन राजस्थानी ग्रामीण जीवन का पर्याय है जो सच्चे आत्मिय भाव से सराबोर है । प्रतिष्ठित कवि श्रवणसिंह राजावत ने कहा कि इन कहानियों में जीवन की गहरी दृष्टि है जो जीवन के भीतर जीवन को खोजती है। इस अवसर युवा लेखक डाॅ. रामरतन लटियाल ने लोकार्पित पुस्तक पर आलोचनात्मक पत्र-वाचन प्रस्तुत करते हुए इसे आधुनिक राजस्थानी साहित्य की एक अनमोल कृति बताया।

 

लोकार्पण समारोह में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत प्रतिष्ठित बाल कहानीकार श्रीमती किरण बादल तथा प्रतिष्ठित कवयित्री डाॅ. पद्मजा शर्मा का अभिनंदन किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर मेहमानों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया । तत्पश्चात संस्थान के सदस्य माधव राठौड़ ने स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत किया। संचालन डाॅ. इन्द्रदान चारण ने किया। कार्यक्रम के अंत में संस्थान सदस्य मूलाराम बोरावड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर सुशील कुमार, डाॅ. पद्मजा शर्मा, संतोष चौधरी, चांदकौर जोशी, बसंती पंवार, निर्मला राठौड, उषा रानी पुंगलिया, लता खत्री, कालूराम परिहार, भंवरलाल सुथार, भवानीसिंह पातावत, कमलेश तिवारी, दीपसिंह दूदवा, मनोज गहलोत, नाथूसिंह राठौड, रामकिशोर फिड़ोदा, रजाक हैदर, राजकुमार यादव, डाॅ. जितेन्द्र सिंह, डाॅ. अशोक गहलोत, डाॅ. भींवसिंह राठौड, डाॅ. अमित गहलोत, महेन्द्रसिंह छायण, डाॅ. मनोजसिंह, डाॅ. रणजीतसिंह, शिवलाल बरवड़ सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, गणमान्य नागरिक, शोध-छात्र एवं मातृभाषा प्रेमी मौजूद रहें।

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