जहां कथा, वहां नेता…

शहर के पाटे चौमासे में रात के समय गुलजार रहते हैं। दिन की उमस से बेहाल पाटेबाज घर में दुबके रहते हैं, हथाई का समय रात को ही मिलता है। पाटों पर इन दिनों अनेक मोहल्लों, गलियों में हो रही भागवत कथा, राम कथा को लेकर चर्चाएं तेज है। पाटेबाज को ये जानने की उत्सुकता थी कि इस बार हर कथा में कोई भावी एमएलए क्यों दिख रहा है। एक अनुभवी पाटेबाज ने बताया कि धर्म के नाम को ज्यादा जपने वाली पार्टी का टिकट चाहने वाले हैं ये सब। जो जितना अधिक खुद को धार्मिक साबित करेगा, शायद उसे टिकट मिल जाये। एक पाटेबाज ने बताया कि आधा दर्जन टिकट चाहने वालों ने शहर में आदमी छोड़ रखे हैं, वे पता करके बताते हैं कि कहां कथा चल रही है। अगले दिन बिना बुलाये वहां जा धमकते हैं और सोशल मीडिया भर देते हैं। शायद पार्टी वालों की नजर पड़ जाये, वो धार्मिक साबित हो जाये। जहां कथा, वहां नेता।

फिर बाजी मार ले गये नोखा वाले

इन दिनों शहर के पाटों पर कांग्रेस की चर्चा ज्यादा है। क्योंकि वो ही चुनाव के मैदान में पहले उतरी है। पाटे पर आते ही महाराज ने पासा फेंका- कांग्रेस ने चुनाव की कमेटी बना दी। पता है कि कौन कौन आया। बाकी पाटेबाज चुप, क्योंकि उनको पता नहीं था। वाजिब सवाल पूछा एक पाटेबाज ने कि आप बताओ कौन आया। महाराज मुस्कुराये और पान का बीड़ा मुंह मे डाल बोले- फिर नोखा वाले नेताजी बाजी मार ले गये। पाटा इस सूचना के बाद इस बहस में लग गया कि नोखा वाले नेताजी की आखिर इतनी पहुंच कैसे है। रात बीत गई मगर पाटा तय नहीं कर पाया नोखा वाले नेताजी की पहुंच की वजह।

दोस्ती पक्की है या पहले जैसी

इन दिनों पाटे नोखा व खाजूवाला वाले नेताओं की जुगलबंदी को लेकर चकित है। पाटेबाज ने बताया कि सीएम साब ने दोस्ती कराई है, दोनों का एक दूसरे को मिठाई खिलाते फोटो आया था ना। दूसरे पाटेबाज ने दहला मारा, जसरासर में खाजूवाला वाले नेता तो थे नहीं। अब देहात में नोखा वाले नेताजी अध्यक्ष बना लाये तो भी वे नहीं बोले। पाटा ये सवाल जरूर कर रहा है कि दोनों की ये जुगलबंदी कितनी चलेगी, चुनाव तक या उसके बाद भी। पाटे के महाराज बोले, ये तो पता नहीं पर दोनों ही पार्टी में महत्त्व जरूर पा गये। अब दोनों की गारंटी कौन ले, वे खुद ही ले सकते हैं।

फिर साथी आ गया चर्चा में

वर्षों पहले शहर में एक पोस्टर ने धूम मचाई थी – साथी चाहिए या साहब। इस पोस्टर वाले नेताजी की इन दिनों पाटों पर खूब चर्चा है। क्योंकि ये भी इस बार साहब वाली सीट पर टिकट मांग आये हैं, वो भी प्रभारी रंधावा से। तर्क वही पुराने है, अंदाज भी वही है, बस दावा नया है। पाटों पर माना जा रहा है कि साहब के सामने टिकट के मामले में किसी की दाल नहीं गलनी है। मगर पाटा इस बात की प्रतीक्षा जरूर कर रहा है जिस तरह साहब ओएसडी पर बोले थे, वे इस साथी पर कब बोलेंगे।

कुण आसी सहर मांय

एक तरफ कांग्रेस व भाजपा में टिकट की दौड़ लगी हुई है वहीं शहर में पद पाने वाले भी दौड़भाग कर रहे हैं। ये दौड़ भाजपा में पद पाने की है। देहात में तो नये पदाधिकारी बन गये मगर शहर में बाकी है। उसके लिए मैं तेरा, मैं तेरा साबित करने की होड़ मची है। ये होड़ दिल्ली वाले मंत्री जी के सामने अधिक है। जैसे उनकी यस तो पद पक्का। पाटे अपनी तरफ से तो पद बांट चुके। एक राजपूत, एक एससी, एक बनिया महामंत्री तय कर दिये। महाराज बोले पाटेबाजों से कि भैया इस बार अध्यक्ष अलग फैशन का है, कौन बनेगा करोड़पति, इसका अंदाजा अंत तक नहीं लगने देगा। दिल्ली वाले मंत्री जी की कितनी चलेगी, ये भी पत्ते खुलने के बाद ही पता चलेगा।

‘होळी आळा बींद’

लोरिया मराज पाटै माथे आडा हुया ई हा कै अवाज आई ‘पगे लागणा’। बैठा हुय’र देख्यो नेताजी आया हा। बोल-बतलावण हुई। इत्ती रात नै आज थे? अर अठै? सवाल हुवण सूं पैली ई नेताजी कैय दियो-कैई दिन हुयग्या मिलण ने आयग्यो। जांवता कैयग्या ‘अबकै आपां रो पक्को है, त्यार रैया..।’ नेताजी व्हीर हुया। मराज पाछा आडा हुवता टुणको नाख्यो-हणे आपां ने इयां ई होळी रा बींद पोखणा पड़सी। बात पूरी हुवण सूं पैली फेर अवाज आई-पगे लागणा…।

बिना ब्यांव रा मुकळावा..

गांव मांय बात चाली ‘मंतरी जी’ आवै। सैं भेळा हुया। बै आया। कैयो-सरकार घणी ‘राहत’ दिराई। पाछी लावणी है। बै व्हीर हुयग्या। भोळजी रै माथै सळ देख’र सैणजी पूछ्यो -सोच मा कियां पड़ग्या..! अणभणा हुयोड़ा भोळजी बोल्या, नेतोजी कद टिगट लाया। कद जीत्या। अर कद मंतरी बणग्या ठा ई को लागी नी। सैण जी समझायो-सरकार कैई मंतरी आप रै कानी सूं ई बणाय देवै। ई मांय ‘पट्टा कतरण आळा’ ‘पूजा करण आळा’ ‘भांडा घड़ण आळा’ ‘गैणा घड़ण आळा’ जैड़ा कैई मंतरी हुवै। बिचारा भोळजी चमगूंगा हुयोड़ा खेतां कानी टुर ग्या। बड़-बड़ करता जावै हा- बिना ब्यांव आळा मुकळावा सूं ई कदै कडुम्बो बधै..।

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