संविदाकर्मियों को नियमित करने का मामला, आचार संहिता लगते ही अटका

आरएनई,बीकानेर।
48 घंटे तक जयपुर से अपने जिला मुख्यालयों तक बार-बार चक्कर लगाने और दिन-रात सूचियां बनाने से लेकर दस्तावेजों का मिलान करने तक की प्रक्रिया में गुजारने के बावजूद राजस्थान के एक भी संविदाकर्मी को नियमित नहीं किया जा सका। आचार संहिता लगने के साथ ही पूरी प्रक्रिया बंद हो गई। अब नई सरकार इस मुद्दे पर नये सिरे से निर्णय लेगीमामला यह है:
राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग में 33 कैडर के संविदाकर्मियों को नियमित करने के लिए सरकार ने नियमों में संशोधन किया। आचार संहिता लगने से दो दिन पहले यानी शनिवार शाम को आदेश देकर कुछ जिलों के सीएमएचओ को जयपुर बुलाया। सभी दस्तावेज लेकर पहुंचे सीएमएचओ से पूरे दिन सूचिंया बनवाई। फाइलें तैयार करवाई। इनमें एक ही कैडर के अधिकांश कार्मिकों को नियुक्ति की प्रक्रिया चली। बाकी कैडर वालों को पता चला तो रविवार देर शाम जयपुर में स्वास्थ्य भवन के आगे धरना लगा दिया।

फाइलें लेकर लौटे सीएमएचओ को बीच रास्ते से वापस बुलाया:
धरना लगने के बाद आक्रोश बढ़ता देख रविवार देर रात उन सीएमएचओ को वापस जयपुर आने का आदेश दिया जो शाम को ही वहां से फाइलें लेकर रवाना हुए थे। ऐसे में अधिकांश अपने जिलों में पहुंचते ही वापस रवाना हो गए।

सोमवार सुबह 10 बजे बाद ये सीएमएचओ स्वास्थ्य भवन पहुंचना शुरू हुए। इससे पहले ही यह समाचार आ गया कि 12 बजे चुनाव घोषणा की प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली है। ऐसे में सभी को वापस रवाना कर दिया गया।

कुल मिलाकर पूरी भागदौड़ का कोई परिणाम नहीं निकला। एक भी संविदाकर्मी को नियमित होने का अवसर नहीं मिला। सरकार की घोषणा हवाई साबित हो गई। नाराज संविदाकर्मियो का कहना है, सरकार को अगर नियुक्ति करनी होती तो पांच साल में कभी भी कर सकती थी। पता है कि आचार संहिता लग रही है उससे ठीक एक दिन पहले कवायद करने का मकसद सिर्फ धोखे में रखना था। नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने भी सरकार पर यही आरोप लगाया।

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