राजस्थान के प्रमुख नेताओ की मीटिंग मे रणनीति पर बात करेंगे खड़गे ,कर्नाटक से सबक लेकर शाह कर रहे है सीधा हस्तक्षेप 

 

नवम्बर में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने गति पकड़ ली है, मिशन राजस्थान को फाइनल करने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रदेश प्रभारी, प्रदेशाध्यक्ष, सीएम, वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई है जिसमें चुनावी रणनीति को अंतिम रूप दिया जायेगा। इसी कारण हरीश चौधरी, रघु शर्मा, रघुवीर मीणा को बैठक में बुलाया गया है। सचिन को लेकर अभी तक स्पष्ट नहीं है। क्योंकि उनका मसला अब कर्नाटक की तरह सोनिया गांधी ने अपने हाथ मे लिया है। वे ही उनसे बात कर कोई रास्ता निकालेंगी।
कांग्रेस का ये तय आंकलन है कि सचिन के बिना जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। सचिन ने जन संघर्ष पदयात्रा की समाप्ति पर अपनी ही सरकार से तीन मांगे की है और चेतावनी दी है कि यदि 15 दिन में उनको पूरा नहीं किया गया तो वे हर जिले में आंदोलन करेंगे। जन यात्रा में जुटी भीड़ से कांग्रेस आलाकमान चिंतित है। यदि ऐसा ही रेस्पॉन्स जिलों में मिला तो पार्टी के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी। किये कराये पर पानी फिर जायेगा। इसीलिए 15 दिन पूरे होने से पहले ही कोई रास्ता निकालने के प्रयास हो रहे हैं। तभी पार्टी ने इस संकट को हल करने का आग्रह सोनिया गांधी से किया है।
आलाकमान, प्रभारी के कहने के बावजूद सचिन ने पांच दिन की पद यात्रा निकाल ये स्पष्ट कर दिया कि वे आरपार के मूड में है। उनका ये कहना कि वे कांग्रेस नहीं छोड़ रहे, पार्टी के लिए ज्यादा बड़ी चिंता है। इस हालत में भाजपा को बैठे बिठाये बड़ा मुद्दा मिल जायेगा। जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने तीन बिंदुओं का एक फार्मूला सचिन के लिए तय किया है। उसी पर सोनिया उनसे बात करेगी। गहलोत भी जन यात्रा के बाद उतने तीखे बयान नहीं दे रहे हैं जितने पहले देते आये हैं। सचिन गुट जानता है कि कोई फैसला होगा तो अभी होगा, इसी कारण उनके तेवर तीखे है। स्पष्ट संदेश है पार्टी को।
कांग्रेस को उम्मीद है कि कर्नाटक की तरह यहां भी समस्या का हल निकलेगा। क्योंकि जितना गतिरोध व टकराहट सिद्धारमैया व डीके शिवकुमार में थी, उतनी राजस्थान में नहीं है। समझा जा रहा है कि सचिन को महत्त्वपूर्ण जिम्मेवारी दी जायेगी और टिकट वितरण में भी उनको तरजीह मिलेगी। कुछ अन्य विकल्प भी सचिन के सामने रखे जायेंगे। इसके अलावा सचिन ने जो मुद्दे उठाये हैं, उनका लाभ कैसे पार्टी को मिले, उस पर भी गम्भीरता से विचार किया जा रहा है। कुल मिलाकर सोनिया कर्नाटक में जैसे सिद्धारमैया व डीके को राजी किया उसी तरह गहलोत व पायलट को भी राजी करने की कोशिश में है। अगले एक सप्ताह में कांग्रेस की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो जायेगी। उसके बाद सीधे पार्टी चुनावी बिगुल बजा देगी। राहुल 30 को अमेरिका जा रहे हैं, वे चाहते है उससे पहले ही राजस्थान संकट का सकारात्मक हल निकल जाये।

भाजपा अभी तक पूरी तरह से चुनाव के लिए तैयार नहीं हुई है, जिसका लाभ कांग्रेस उठाना चाहती है।
भाजपा भी राजस्थान को लेकर आराम की स्थिति में नहीं है। चेहरा पीएम होंगे कहकर उसने नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाने की कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली। सी पी जोशी को पार्टी अध्यक्ष बनाकर संगठन में ताजगी लाने की कोशिश भी कारगर नहीं दिख रही। लाडनूं की प्रदेश कार्यसमिति बैठक में वसुंधरा व उनके समर्थक नहीं पहुंचे, उससे पार्टी आलाकमान की चिंता बढ़ी है। साफ है, पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। सब नेताओं की कोशिश बेकार हुई है। हिमाचल व कर्नाटक की हार का सबक भाजपा के पास है इसलिए किसी बड़े नेता को खोने का रिस्क वो उठा नहीं सकती। इन्ही स्थितियों के कारण अब राजस्थान के मसले को गृह मंत्री अमित शाह ने हाथ मे लिया है। सभी नेताओं से बात का सिलसिला भी शुरू होगा। मगर फिलहाल भाजपा की अंदरखाने स्थिति अच्छी नहीं है। तभी तो राज्य के चुनाव ओपन है। जो दल अपनी समस्याओं का पहले हल निकाल लेगा, वो आगे रहेगा। क्योंकि राजस्थान हमेशा ही भावनात्मक व जातिगत मुद्दों पर वोट करता रहा है। इसलिए अगले चुनाव को लेकर अभी कुछ भी भविष्यवाणी करने से हर जानकर बच रहा है।

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