आरएनई रिसर्च स्टोरी : भारतीय वैज्ञानिक अरूंधती ने ऐसा मिश्रण बनाया जो तेल के कुओं से प्रदूषित हुए पानी को पहले जैसा बना देगा, भारतीय पेटेंट दायर

इसलिए महत्वपूर्ण है यह शोध : तेल के कुओं की खुदाई के दौरान अपशिष्ट हुआ पानी हर साल नदियों को खराब कर रहा, वनस्पति, जानवरों के साथ ही इंसानों को भी नुकसान पहुंचा रहा
वर्ल्ड एनवायर्नमेंट-डे पर आरएनई विशेष : ढाई ग्राम मिश्रण से 12 घंटे में एक लीटर पानी पहले की तरह साफ हो जाता है

आरएनई, नेशनल ब्यूरो
भारत की वैज्ञानिक अरूंधती ने एक ऐसा मिश्रण तैयार किया है जिससे तेल के कुओं की खुदाई के दौरान प्रदूषित हुआ पानी फिर से पहले जैसा बनाया जा सकेगा। यह रिसर्च इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पेट्रोलियम इंडस्ट्री हर साल लगभग 1.50 लाख क्यूबिक मीटर अपशिष्ट पैदा करती है। यह अपशिष्ट नदियों में बहा दिया जाता है। जहां भी यह जाता है पानी की गुणवत्ता खराब कर देता है। मछलियां मरती है या बीमारी हो जाती है। इन मछलियों को खाने वालों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। वनस्पति बर्बाद हो रही है। इसके अलावा कितने नुकसान हो रहे हैं इनका अनुमान ही नहीं है। इस लिहाज से देखा जा सकता है कि यह रिसर्च दुनिया के लिए कितनी फायदेमंद है। तकनीकी वैज्ञानिक शब्दों का हिंदी रूपांतरण करें तो कह सकते हैं कि यह फार्मूला संयंत्र आधारित बॉयोमेटेरियल, बॉयोसर्फेक्टेंट तथा एनपीके उर्वरक का संयुक्त मिश्रण है जो जल को पहले जैसा करने में सहायक हो सकता है।


कच्चे तेल के कुओं की ड्रिलिंग और पप्रोसेसिंग के दौरान निकले पानी में तैलीय घटक, नमकीन सोल्यूशंस और सोलवेंट होते हैं, जो तेल उद्योग में विभिन्न चरणों के दौरान उपयोग में लाए जाते हैं। सामान्यतः यह बह जाता है और नदियों और धाराओं तक पहुंच जाता है तथा अंततः जल की गुणवत्ता को खराब कर देता है। ऐसे में एक सुरक्षित और टिकाऊ कल के लिए पर्यावरण में छोड़ने से पहले निकले हुए जल की सफाई करने की आवश्यकता है।

इस फ़्लो चार्ट से समझिए डॉ अरुंधति का जल शुद्धिकरण फार्मूला :

आईएएसएसटी का शोध, कई विफलताओं के बाद मिली सफलता:
डॉक्टर अरुंधती के नेतृत्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी (आईएएसएसटी) के वैज्ञानिकों ने निकले हुए जल के शोधन के लिए एक हरित दृष्टिकोण विकसित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने बार-बार परीक्षण किए। त्रुटियां आती रहीं और अनेक प्रयोगों और अध्ययनों के साथ पौध आधारित बॉयोमेटेरियल, बॉयोसर्फेक्टेंट, जो रोगाणुओं के द्वितीयक मेटाबोलाइट्स हैं, और एनपीए उर्वरक का मिश्रण तैयार किया। इस मिश्रण से पेट्रोलियम इंडस्ट्री से निकले अपशिष्ट जल को पहले जैसा करने में सफलता मिली।

इसमें सामने आया कि लगभग 2.5 ग्राम फॉर्मूलेशन 12 घंटे में एक लीटर जल का शोधन कर सकता है। टीम ने इस विकास कार्य पर एक भारतीय पेटेंट दायर किया है। यह मिश्रण प्रदूषित जल के बहाव से प्रदूषण को रोकने में सहायता कर सकता है और हरित क्रांति को बनाए रखने के लिए इस पानी को फिर से उपयोग लेने योग्य बना सकता है। यह लगातार बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने के लिए फसल उत्पादन को बढ़ाने में सहायता कर सकता है।

जानिए कितना खतरनाक है यह अपशिष्ट:

युनाइटेड स्टेट एनवायर्नमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (यूईपीए) की ओर से पारंपरिक ड्रिलिंग के लिए 2000 में प्रकाशित एक उद्योग अध्ययन (1990 के दशक के डेटा के साथ) ने दिखाया कि पेट्रोलियम उद्योग प्रति वर्ष लगभग 150000 क्यूबिक मीटर (260000 मीट्रिक टन) अपशिष्ट उत्पन्न करता है।

 

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