दो महीने पहले टिकट की बात कहकर गहलोत ने राजनीतिक पासा फेंका, गुटबाजी इससे कैसे थमेगी?

सीएम अशोक गहलोत ने कल एक बयान देकर कि दो महीने पहले उम्मीदवार तय कर दिये जायें, कांग्रेस की राजनीति में भूचाल सा ला दिया है। उनका कहना है कि दो महीने पहले उम्मीदवार तय हो जाने से उसे तैयारी का पूरा समय मिल जायेगा। टिकट के लिए उसे दिल्ली के चक्कर नहीं निकालने पड़ेंगे, वो थकेगा भी नहीं। गहलोत का यह बयान पूरी तरह से कूटनीति का है, जिसका आधार पार्टी के भीतर की गुटबाजी है।


गहलोत के इस बयान के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। अगर ये निर्णय परोक्ष या अपरोक्ष रूप से लागू भी होता है तो फायदे में वे ही रहेंगे। अपने साथ रहे विधायकों को वे टिकट आसानी से दिला सकेंगे। जबकि एक – दो सर्वे में अनेक विधायकों के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी की रिपोर्ट है। दूसरा, इससे पायलट गुट ज्यादा टिकट नहीं ले सकेगा क्योंकि अभी तो पीसीसी अध्यक्ष भी उनके ही साथ है। इसी कारण उनके इस बयान को कूटनीति का हिस्सा माना जा रहा है।


इससे दीगर सोच रखने वाले ये भी कहते हैं कि ये आलाकमान को अलर्ट है। क्योंकि जब पहले टिकट तय हो जायेंगे तो एआईसीसी की भूमिका लगभग गौण हो जायेगी। मतलब टिकट वितरण में भी वे अपना ही आधिपत्य चाहते हैं। सीडब्ल्यूसी की भूमिका भी शून्य हो जायेगी। जबकि पिछले चुनाव में सीडब्ल्यूसी ने बीकानेर पश्चिम व पूर्व के लिए अलग नाम तय किये, बवाल हुआ तो सीडब्ल्यूसी ने टिकट बदला। शायद पहली बार इस तरह टिकट बदला था। इस तरह की आलाकमान की भूमिका ही गहलोत की बात मानने पर खत्म हो जायेगी।


इस बयान को माना जाता है तो कांग्रेस के लिए एक और नेगेटिव बात खड़ी हो सकती है। टिकट पहले घोषित होने पर गुटबाजी बढ़ेगी, क्योंकि कांग्रेस अभी भी गुटबाजी से घिरी है। जिनको टिकट नहीं मिलेगा उनके सामने आप, रालोपा, भाजपा के विकल्प भी खुले रहेंगे। नुकसान कांग्रेस को होगा। हालांकि पहले टिकट मिलने से अच्छी तैयारी हो सकती है, कुछ को मनाने का भी समय मिल जाता है। मगर इतना धैर्य व पार्टी के प्रति निष्ठा इस दौर में दोनों ही पार्टियों में कम ही देखने को मिलती है। बहरहाल ये तय है कि गहलोत का यह बयान कांग्रेस की भीतरी गुटबाजी को लेकर दिया गया कूटनीति का बयान है। जो पार्टी की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आकर्षक लगता है मगर व्यवहार में लागू होना कठिन लगता है।

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