दीपेंद्र सिंह ने बनाया दबाव, कुन्नर ने भी ना की, फार्मूला लगा तो कईयों के कटेंगे टिकट

आरएनई,बीकानेर। भरत सिंह के बाद सचिन पायलट गुट के विधायक व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत ने चुनाव लड़ने के लिए ना कहकर कांग्रेस के भीतर एक नया संघर्ष शुरू कर दिया है। उनके इस कदम से गहलोत गुट के कई बुजुर्ग मंत्रियों व विधायकों की नींद उड़ गई है। इस नैतिक राजनीति की शुरुआत पहले सांगोद के विधायक भरत सिंह ने की। जिन्होंने हाल ही में सीएम के खास व कोटा जिले से आये मंत्री प्रमोद जैन भाया पर खनन घोटाले का आरोप लगाया था और सीएम पर अपरोक्ष रूप से उनको बचाने की बात कही थी। उस पत्र ने कांग्रेस की राजनीति को काफी गर्मा दिया था। उनके पत्र का जवाब अब भी आलाकमान ने नहीं दिया है। अब श्रीगंगानगर जिले से विधायक गुरमीत सिंह कुन्नर ने भी चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि मैं एमएलए ही ठीक हूं। हिसाब से मंत्री बनाया जाना चाहिए था। मगर अब मैं चुनाव लड़ने का इच्छुक नहीं।


नैतिकता की राजनीति के नाम पर कल दीपेंद्र सिंह ने भी चुनाव लड़ने के लिए ना कह दी। वे इस शासन में शुरू से सचिन पायलट के साथ है। उनके साथ वे मानेसर भी गये थे, जब नेतृत्त्व परिवर्तन की लड़ाई थी। उसके बाद से लगातार वे उनके साथ है। जन संघर्ष पदयात्रा के समापन पर जयपुर में हुई सभा में भी वे शामिल थे। जबकि राजनीति में इससे पहले वे गहलोत के निजी लोगों में थे। मगर इस शासन में उनसे दूरी हो गई। सचिन को पार्टी के भीतर संघर्ष में जिन वरिष्ठ नेताओं का साथ व सहयोग मिला उनमें ये एक हैं। हेमाराम जी, बृजेन्द्र ओला भी पायलट के साथ है।राजनीति के जानकारों का मानना है कि हेमाराम चौधरी भी इसी राह पर चल सकते हैं।

पिछले दिनों बाड़मेर में बड़ा आयोजन कर अपनी बेटी को इंट्रोड्यूज कर दिया था। वे भी यदि यही निर्णय करते हैं तो गहलोत गुट के उम्रदराज नेताओं पर बड़ा दबाव बन जायेगा।
उदयपुर के चिंतन शिविर व उसके बाद रायपुर में हुए महाधिवेशन में कांग्रेस ने प्रस्ताव लिया हुआ है कि युवाओं व महिलाओं को अब आगे लाया जायेगा। इसी की छांव में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रंधावा ने बुजुर्ग नेताओं को त्याग की सलाह दे दी और कहा कि दूसरे लोगों को अवसर देना चाहिए। उनके बयान ने कांग्रेस के भीतर हलचल मचा दी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस भी कई नेताओं से चुनाव न लड़ने की घोषणा करायेगी। ये भी सम्भव है कि पार्टी उम्रदराज नेताओं पर कोई नीतिगत निर्णय भी ले सकती है। राहुल, खड़गे, गहलोत व पायलट की होने वाली बैठक में भी ये मुद्दा उठेगा। तब ठोस निर्णय लेना ही पड़ेगा। हाल फिलहाल भरत सिंह व दीपेंद्र सिंह के ना को कांग्रेस की राजनीति में बड़ा बम विस्फोट माना जा रहा है।

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