लौट चलो घर लाडलो… चार साल में 400 बच्चे घरवालों से बिछड़कर बीकानेर रेलवे स्टेशन पहुंचे, इस साल भी 99 को घर पहुंचाया

बेसहरा बच्चों को दिया सहारा : रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन बनी सेतू, भटक कर स्टेशन पहुंचने वाले बच्चों को पहुंचाती है घर

-बेटियां ही ज्यादा गुम होती है: 10742 बच्चे चार साल में राजस्थान में गुम हुए इनमें से 8424 बेटियां

रमेश बिस्सा

आरएनई, बीकानेर।
रेलवे स्टेशन पर रात के समय लंबी दूरी की ट्रेन से एक 14 से 15 साल का बच्चा उतरा। दिखने में डरा.सहमा सा है। उसे दो पुलिसकर्मी कुछ पूछते है, पर ज्याद कुछ नहीं बता पा रहा। फिर उसे लेकर स्टेशन पर ही तैनात रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन के समक्ष पेश करते है। चाइल्ड लाइन की टीम के सदस्य उसे बड़े ही स्नेह से पास बिठाते है, चाय-नाश्ता कराते है। फिर काउंसलिंग करते है, तो बच्चा बताता है कि वो यहां तक किस तरह से पहुंच गया। कहां से आया है, पूछने पर थोड़े संकोच से बोलता है। अब चाइल्ड लाइन की टीम उसे बाल कल्याण समिति के समक्ष ले जाती है।

जहां से उसे किशोर गृह भेज दिया जाता है। स्टेशन पर रोजाना इस तरह के वाकिए आम है। असल मायने में रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन ऐसे राह भटके बच्चों की मददगार बन रही है। हेल्प लाइन महज किशोर गृह तक बच्चे को छोड़कर इतिश्री नहीं करती, उससे आगे वो पूरे प्रयास करके बच्चें के परिजनों से सम्पर्क साधती है। बच्चें को उन तक पहुंचाने की व्यवस्था भी स्वयं के स्तर पर करती है। यही वजह है की हर साल देश के अलग-अलग राज्यों से बड़ी संख्या में बच्चे भटक कर बीकानेर पहुंच जाते हैं, यदि वो रेलवे स्टेशन पर आ जाते है, तो उरमूल ट्रस्ट की ओर से संचालित रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन उसके लिए मददगार साबित होती है।

बीकानेर में अब तक 400 बच्चों का रेस्क्यू
घर से भागकर आने वाले। भूलवश गलत ट्रेन पकड़कर बीकानेर पहुंचने वाले। बाल मजदूरी या बाल श्रम के लिए आने वाले। गुमशुदा, बेसहारा बच्चों को उनके परिजनों तक पहुंचाने के लिए भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से संचालित इस हेल्प लाइन ने बीकानेर में अपनी स्थापना 2019 से अब तक 400 से ज्यादा बच्चों का रेस्क्यू किया है। उन्हें परिजनों तक पहुचंया है। यह संस्था मुख्यतौर पर 0 से 18 साल तक के बच्चों के लिए ही कार्य करती है।

एक साल में 99 को परिजनों तक पहुंचाया…
बीकानेर स्टेशन पर स्थित रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन संस्था के इस्माइल दाउदी ने बताया कि जून 2022 से अब तक एक साल में 99 ऐसे बच्चों को उनके परिजनों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, जो किसी न किसी कारणवश अपने घर से निकलकर यहां तक पहुंच गए थे।

इन राज्यों से यहां आ रहे है बच्चे

राजस्थान, हरियाणा, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तराखंड़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बंगाल उड़िसा, केरल, कर्नाटक, आसाम सहित महानगरों से है जो अपना घर छोड़कर पराए शहर में किसी न किसी कारण से आ जाते हैं। कई इनमें वो भी होते है जो रूठ कर ही घर से निकले और ट्रेन पकड़ ली। लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि वो किस शहर जा रहे हैं। भटक कर यहां पहुंच जाते है।

 स्टेशन पर यहां करें सम्पर्क…
बेसहरा बच्चों का सहारा बन रही रेलवे चाईल्ड हेल्प लाइन। बीकानेर रेलवे स्टेशन के एक नम्बर प्लेटफार्म पर वीआईपी गेट के पास में पुराने पूछताछ कार्यालय परिसर में स्थित है। जहां पर तैनात टीम 24 घंटें पूरी निष्ठा के साथ अपनी ड्यूटी का निर्वाह करती है। हेल्प लाइन टीम में इस्माइल दाउदी, सरिता राठौड़, प्रवीण चौहान, ओम प्रकाश रामावत, विशाल सैनी, मुकेश राजपुरोहित, रामचंद्र गहलोत और मनोज बिश्नोई शामिल है। साथ ही आरपीएफ, जीआरपी भी सक्रिय रूप से भागीदारी निभा रही है।

आाड़े नहीं आती शारीरिक निशक्तता
रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन बच्चों का सहारा देती है। लेकिन इस संस्था में ऐसे सदस्य भी है। जो स्वयं शरीरिक रूप से निशक्त है। इसके बावजूद गुमशुदा या कई बार भाग कर आए ऐसे बच्चों की काउंसलिंग कर उन्हें परिजनों से मिलवा देते है। यह शख्स है मोहम्मद इस्माईल जो हर समय में इस तरह के बच्चों की मदद के लिए पूरे जोश और उत्साह के साथ तैनात रहते है।

प्रदेश के आंकड़ों पर नजर :  बीते चार साल में राजस्थान में इतने बच्चे खो गए
गृह विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 2019 से 2022 तक चार साल में प्रदेश से 10 हजार 742 बच्चे गुम हो गए थे । हलांकि रेलवे चाइल्ड हेल्प लाइन, राजस्थान पुलिस, आरपीएफ, जीआरपी सहित अन्य संस्थाओं के सहयोग और मदद से 10 हजार से ज्यादा बच्चे वापस भी मिल गए हैं। गुमशुदा होने वाले बच्चों में बालक 2318 और बालिकाएं 8424 शामिल है।

बीकानेर जिले में इतने हुए गुम
रिपोर्ट के अनुसार बीते चार साल में जिले में 152 गुम हो गए। इसमें 45 बालक और बालिकाए 107 थी। पुलिस व अन्य संस्थाओं के प्रयासों से 148 बच्चे मिल भी गए।

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