राजे का जलवा, शाह खुद नहीं बोले और उनको पहले बुलवाया, भाजपा के भीतर चल रहा बहुत कुछ

जोधपुर के बेलासर में राजे समर्थक पूर्व विधायक बाबूसिंह राठौड़ से माइक छिनने की घटना को अभी दो दिन ही नहीं हुए थे और उदयपुर में कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने भाजपा में एकता के दावे की पोल खोल दी। एक बार फिर भाजपा के भीतर की कलह जग जाहिर हो गई।हुआ यूं कि मंच पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बैठे थे और सामने भारी भीड़। शाह के अगल बगल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सी पी जोशी व पूर्व सीएम राजे बैठे थे। नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ मंच संचालन कर रहे थे। प्रदेशाध्यक्ष जोशी का भाषण हुआ तो संचालक राठौड़ ने नारों के साथ शाह को सम्बोधन के लिए आमंत्रित कर दिया। शाह अपनी जगह से नहीं उठे। पास बैठी वसुंधरा राजे को हाथ जोड़ विनम्रता पूर्वक संबोधन के लिए आग्रह करते दिखे। ये देखने के बाद उनको बुलाया गया और उन्होंने सम्बोधन भी दिया। शाह उसके बाद ही बोले।


दिखने में ये शाह की विनम्रता और राज्य के बड़े नेता का सम्मान था, जो जायज था। मगर मंच पर उनके होने के बाद भी संबोधन में उनका नाम न होना, चकित करने वाला था। ये भी तय है कि बोलने वालों के नाम संचालक को चर्चा के बाद ही दिए गये होंगे, उन्होंने अपने स्तर पर तो ये निर्णय किया नहीं। इस निर्णय में प्रदेशाध्यक्ष की भी भागीदारी निश्चित रही होगी। तभी तो संचालक ने ये किया।


चाहे प्रदेशाध्यक्ष हो या नेता प्रतिपक्ष, उनको ये तो जानकारी है ही कि राजे केवल पूर्व सीएम नहीं है अपितु वे पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी है। प्रोटोकॉल के अनुसार अध्यक्ष नहीं है तो पार्टी की मुखिया वही है। उनका सम्बोधन न रखना, कुछ न कुछ भीतरी बात को दर्शाता है।


इस दृश्य को बेलासर की घटना से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में राजे समर्थक बाबूसिंह से माइक छीना गया था। उसकी गूंज भाजपा आलाकमान तक भी हुई। जनता में भी उसे लेकर पार्टी की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा। शाह वैसी स्थिति नहीं बनने देना चाहते, क्योंकि चुनावी राज्य की हर गतिविधि पर उनकी पूरी नजर रहती है। इसी कारण यहां उनके कहने से राजे को बुलवाया गया। मगर ये घटनाएं इतना तो स्पष्ट करती ही है कि भाजपा के भीतर सब कुछ सही नहीं है। अब भी नेताओं में दूरियां है। इस हालत में पार्टी कैसे सरकार पर हमलावर होगी।

– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘

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