श्रीडूंगरगढ़ में इस बार कांग्रेस व भाजपा के लिए उम्मीदवार तय करना आसान नहीं, बदल चुके हैं अब समीकरण

आरएनई, बीकानेर।

बीकानेर जिले की 7 सीटों के लिए भाजपा और कांग्रेस को इस बार उम्मीदवार तय करने में खासा जोर लगेगा। दोनों पार्टियों के लिए 3-3 सीट ऐसी है जहां पार्टियों को एक व्यक्ति चुनने में पसीना उतर जायेगा। वहीं भाजपा को बीकानेर पश्चिम से पिछला चुनाव लड़े स्व. डॉ. गोपाल जोशी के स्थान पर नया उम्मीदवार उतारना होगा, ये भी आसान काम नहीं। वर्तमान में दोनों पार्टियों के पास 3-3 सीटें हैं और श्रीडूंगरगढ़ की सीट माकपा ने जीत रखी है। दोनों पार्टियां इंटरनल व बाहरी सर्वे एक एक बार करा चुकी है मगर अभी भी असमंजस बरकरार है।

पहले बात सत्ताधारी कांग्रेस की। कांग्रेस के लिए श्रीडूंगरगढ़, लूणकरणसर व बीकानेर पूर्व सीटें कठिन हैं, उम्मीदवार चयन की दृष्टि से। चर्चा करते हैं श्रीडूंगरगढ़ सीट की। यहां वर्तमान में माकपा के गिरधारी महिया निर्वाचित हैं, जो इस कार्यकाल में कांग्रेस सरकार के साथ रहे, तब जब इस सरकार को गिराने की कोशिश हुई। इसी कारण सीएम उनके लिए उदार है और सत्ता के विधायक की तरह ही उनके काम किये हैं।

दूसरे इस सीट पर कांग्रेस के मंगलाराम गोदारा लगातार दो चुनाव हार चुके हैं। इस सीट पर इसी वजह से कई नये दावेदारों ने भी दावा किया है। कांग्रेस अभी तक ये निर्णय नहीं कर पाई है कि वो माकपा से समझौता करेगी या नहीं। हालांकि सीएम व प्रभारी रंधावा ने सहयोगियों को साथ रखने की बात कही थी। मगर माकपा से चुनावी समझौते का निर्णय प्रदेश के हाथ में नहीं, ये फैसला तो आलाकमान ही करेगा। इस इलाके के कांग्रेसी इस बात का पूरा जोर लगा रहे हैं कि माकपा से समझौता न हो क्योंकि ये सीट परंपरागत कांग्रेस की है।
भाजपा की तरफ से पिछली बार ब्राह्मण नेता ताराचंद सारस्वत चुनाव लड़े थे, मगर जीत के निकट भी नहीं पहुंच सके। जाट बाहुल्य इस सीट पर गैर जाट किसनाराम नाई ही ऐसे उम्मीदवार थे जो चुनाव जीते हैं। वे वसुंधरा राजे गुट में है और इस बार भी ताल ठोक रहे हैं, खुद के लिए नहीं अपितु अपने परिजन के लिए। वे खुद एक बार निर्दलीय लड़ भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर चुके हैं, फिर कर सकते हैं।

भाजपा अभी तक इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है कि इस सीट पर जाट उम्मीदवार मैदान में उतारे या गैर जाट। क्योंकि दोनों ही तरफ के कई उम्मीदवार टिकट के लिए दावा कर रहे हैं। भाजपा कोर टीम संगठन के जरिये रिपोर्ट ले चुकी मगर सर्वे होना है और उसका रिजल्ट बड़ी भूमिका निभाएगा। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के इर्द गिर्द ज्यादातर टिकट के दावेदार घूम रहे हैं क्योंकि उनकी राय भी निर्णय में दखल रखेगी। मेघवाल सधे हुए नेता हैं और पार्टी लाइन से अलग जाकर कुछ भी कमिटमेंट नहीं करते। इसलिए माना जा रहा है कि सर्वे के बाद ही भाजपा के टिकट की दिशा तय होगी।
माकपा में टिकट को लेकर तो किसी भी तरह की टकराहट नहीं है, बात कांग्रेस से समझौते की है। देश में जो नया ‘इंडिया’ गठबंधन बना है, माकपा उसमें शामिल है। अब कांग्रेस आलाकमान ही समझौते पर निर्णय करेगा इस कारण प्रदेश के नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

इस बार भाजपा व कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने की पूरी तैयारी रालोपा ने की है। हनुमान बेनीवाल इस जाट बाहुल्य सीट पर किसान महापंचायत कर संकेत दे चुके हैं कि रालोपा उम्मीदवार उतारेगी। ये नया समीकरण पहली बार इस क्षेत्र में बन रहा है जो बड़ा उलटफेर कर सकता है। रालोपा की एंट्री के कारण ही भाजपा व कांग्रेस को उम्मीदवार तय करने में ज्यादा दिक्कत आ रही है। मगर अब तक की स्थिति से यही लगता है कि श्रीडूंगरगढ़ सीट पर इस बार मुकाबला कांटे का होगा।

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