भाजपा की पहली सूची में केवल श्रीडूंगरगढ़, गैर जाट मतों के ध्रुवीकरण की योजना

भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए कल 41 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी। अनुमान के अनुसार इस सूची में भी 6 लोकसभा सदस्यों व एक राज्यसभा सदस्य का नाम था, इनको अब विधायक के लिए चुनाव लड़ना है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी ये ही फार्मूला भाजपा ने अपनाया था, वहां भी कई सांसदों को टिकट दिया गया है।

पहली सूची में बीकानेर जिले की सात सीटों में से केवल एक श्रीडूंगरगढ़ के लिए उम्मीदवार का नाम आया। भाजपा ने एक बार फिर पिछली बार हारे हुए प्रत्याशी ताराचंद सारस्वत को टिकट दिया है। सारस्वत को टिकट मिलने की उम्मीद इस सीट के अन्य दावेदारों को भी थी, इसीलिए सभी दावेदार एकत्रित होकर जयपुर, दिल्ली गये। नेताओं को यहां तक कह दिया कि हम में से किसी को टिकट दे दें, इनको नहीं। मगर उन सब पर सारस्वत भारी पड़े। उनकी ही चली। उसकी भी कई वजह थी। पहली तो ये कि सारस्वत के संघ नेताओ से अच्छे संबंध है। दूसरे वे देहात भाजपा अध्यक्ष थे मगर चुनाव लड़ना था इस कारण कुछ महीनों पहले पद छोड़ दिया। उनको पता था कि पद पर रहते हुए उनका टिकट का दावा कमजोर हो जायेगा।

तीसरे इस सीट का जातिगत समीकरण जो उन्होंने रखा वो भी सहायक रहा। श्रीडूंगरगढ़ को जाट बहुल सीट माना जाता है। अक्सर यहां से इसी समाज का व्यक्ति विधायक बनता रहा है। इस समाज के तिलस्म को तोड़ने का काम किसनाराम नाई ने किया था। उन्होंने गैर जाट मतों का ध्रुवीकरण किया और जीत हासिल की। सारस्वत उसी फार्मूले को अपने लिए आधार बनाये हुए है। कांग्रेस, माकपा व रालोपा से उम्मीदवार जाट समाज से ही आने का कयास है। इसी वजह से भाजपा ने जाट वोटों के विभाजन को देखते हुए गैर जाट को टिकट दिया है। जबकि भाजपा से टिकट मांगने वालों में जाट नेता भी शामिल थे।

इस जाट बहुल क्षेत्र में सारस्वत की राह उतनी आसान नहीं है। वोटों का ध्रुवीकरण करने में वे सफल रहे तो ही कोई उम्मीद जगेगी। इसके अलावा उनके सामने पार्टी के स्थानीय नेताओं को भी साथ लाना चुनोती है। टिकट की दौड़ ने काफी कड़वाहट पैदा कर दी है, उसे मिटाए बिना ये सम्भव नहीं हो सकेगा। ये काम आसान तो नहीं लगता।

इनके अलावा पूर्व विधायक किसनाराम नाई भी भाजपा में वापसी कर चुके हैं, उनका भी एक प्रभाव क्षेत्र है। वे भी अपने लिए या परिजन के लिए टिकट मांग रहे थे। सांसद व केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल व सारस्वत के संबंधों को लेकर भी पार्टी के नेता अलग ही राय देते दिखे। इस हालत में सारस्वत को भीतरी व बाहरी, दोनों मोर्चों पर एक साथ संघर्ष करना होगा। पार्टी ने जिस आधार पर टिकट दिया है, उसे पाना भी होगा। असली चुनावी तस्वीर तो कांग्रेस व अन्य दलों के उम्मीदवार सामने आने पर पता चलेगी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘

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